इतिहास से पुरातन है,
परम्पराओं से है पुराना।
शहर-ए-बनारस है,
भोले का दीवाना।
रामचरितमानस रचा तुलसी ने काशी में,
बुद्ध ने सारनाथ में पहला प्रवचन दिया।
मुंशी, जयशंकर ने कलम थामी,
कबीर, त्रैलंग, सरामानंद ने जन्म लिया।
पंडित रवि शंकर का सितार,
बांसुरी वादक पंडित हरि प्रसाद।
गिरिजा देवी की ठुमरी,
उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ की शहनाई।
गंगा की अनुपम घाट,
BHU की अनोखी थाट।
आरती की मनमोहक शाम,
घंटियाँ और शंख की आवाज़।
रामनगर की रामलीला और,
होली की गुजिया और गुलाल।
बनारसी साड़ियाँ का कारोबार,
और रेश्मी कुर्तों के कारखाने हज़ार।
ठठेरी बाजार, विश्वनाथ की गलियाँ,
लहुराबीर और गोदौलिया।
दासस्वमेध और अस्सी घाट,
काशी चाट भंडार की वो चटपटी तीखी चाट।
सावन का मेला और,
कैंट पर वो गोलगप्पों का ठेला।
पान की गुमटि और,
कुल्हड़ वाले चाय की चुस्की।
वहीं, दूसरी ओर खड़ी मणिकर्णिका,
दिखलाती जीवन का साँच है।
हर शहर की कुछ बात है, लेकिन,
शहर-ए-बनारस, तू बहुत खास है।
Awesome bhai
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