लिखी पत्थर की लकीरें आज फिर मिटने लगी हैं
अच्छे दिनों की सच्चाई अब साफ़-साफ़ दिखने लगी है
पराली के बाद अब जिंदा लाशें भी जलने लगी हैं
देश की आवाम चंद कुत्तों से डरने लगी है
देख कर ये व्यथा स्वाभिमान घायल हो गया है
ये देश मेरा क्या पागल हो गया है
पुराणों के दानव स्वयं मानव में बदल रहे हैं
लगता है रावण अब राम से ना डर रहे हैं
हैवान बन इंसान खुद इंसान को जला रहा
और न्याय पाने को मोमबत्तियां गला रहा
ये बुजदिलों की भीड़ से मन कायल हो गया है
ये देश मेरा क्या पागल हो गया है
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