Monday, May 25, 2020

मैं तेरा अपराधी हूँ


छिपकर बाण चलाने वाला
नहीं कोई मैं व्याधी हूँ
मृगतृष्णा में मूढ़ बना माँ
मैं तेरा अपराधी हूँ 

बहती निर्मल धाराओं का 
मुख मोड़ रहा मैं राही हूँ 
तुम यदि शब्द परमेश्वर के 
तो मैं कागज की स्याही हूँ 
तुम कल्पवृक्ष कल्पना कामना 
तो मैं तेरा साधी हूँ 
नित प्रतिक्षण तुमसे द्वंद किया मन
मैं तेरा अपराधी हूँ 

तुम यदि सूर्य हो उगते दिन के 
तो मैं प्रकाश का लोभी हूँ 
यदि कटु वचनों से क्षीण किया हो
तो मैं उसका क्षोभी हूँ
जो सफल हुई साधना नहीं तो 
मन मस्ती का मादी हूँ 
प्रायश्चित का ना हूँ अधिकारी प्रभु
मैं तेरा अपराधी हूँ
        

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