लहरें हिलोर कर उठ रही हैं
खून की मेरी रगों में
हो सके तो शक्ति दो प्रभु
रुकना मेरे वश में ना है
है छलावा जग का तो क्या
निष्कपट छाया भी मेरी
छीन लो प्रभु शीश मेरा
झुकना मेरे वश में ना है
सहस्त्र हाथियों का बल
मैं तुमसे माँगता नहीं
आशीष दो प्रभु बस विजय का
शिष्य हारने को विवश ना है
हो सके तो शक्ति दो प्रभु
रुकना मेरे वश में ना है
नीति कर्मठ जानते हैं
शस्त्र का प्रतिघात ना
भाग जाऊँ कायरों संग
वह बाण मेरे तरकश में ना है
हो सके तो शक्ति दो प्रभु
रुकना मेरे वश में ना है
चल पड़ूॅं अकेला मैं मरण तक
पा वीरगति प्रभु के चरण तक
जोड़ लूँ उनको स्वयं से
टूटना मेरे वश में ना है
हो सके तो शक्ति दो प्रभु
रुकना मेरे वश में ना है
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