Friday, May 29, 2020

जीवन की प्रेरणा




जीवन जीने की आधारशिला हिल जाती है
पर भय मृत्यु का ना स्वप्नों में आता है
यूँ तो कल्पना अमरत्व की कदाचित ना की
पर काल प्रकोप से अमृत धारा में भी विष मिल जाता है 

वंचित मन को स्नेह नहीं मिल पाता है 
फिर जीवन कुमुदित पुष्पों सा खिल जाता है
पर भ्रमरों के रसपान के भय से
नित प्रतिदिन मुरझाता है पर खिल जाता है

माना समय पर नया सवेरा आता है 
पर मन भी कल्पनाओं से भर जाता है 
उदित सूर्य संग किरणें जीवन की आती हैं 
फिर प्रकाश के पार अंधेरा आता है 

निहित करूँ मृत्यु या जीवन 
या अंधकार संग हो प्रकाश भी 
जब तक जियूं ऐसे जियूं
कि चरणों में हो पाताल भी 
मृत्यु का भय चाहें जितना कम्पित कर ले 
पर मरूं तो ऐसे मरूं कि
शीश पर हो आकाश भी 
                          

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